बस्तर का गोंचा त्योहार और तुपकी का महत्व

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बस्तर का गोंचा त्योहार और तुपकी से भगवान जगन्नाथ को सलामी ।

बस्तर में भगवान जगन्नाथ के सम्मान में प्रतिवर्ष गोंचा त्योहार बड़े धुमधाम से मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के प्रति आस्था के इस महापर्व में आदिवासी जनता भगवान को सलामी देने के लिये जिस उपकरण का उपयोग करती है उसे तुपकी कहते है। गोंचा महापर्व में आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र तुपकी होती है। विगत छः सौ साल से तुपकी से सलामी देने की परंपरा बस्तर में प्रचलित है।

Goncha parv chhattisgarh
Goncha Parv – तुपकी
गोंचा त्यौहार

तुपकी बांस से बनी एक खिलौना बंदुक है। तुपकी में पौन हाथ लंबी बांस की एक पतली नली होती है। यह दोनो ओर से खुली होती है। इसका घेरा सवा इंच का होता है। नली में प्रवेश कराने के लिये बांस का ही एक मूठदार राड होता है।

लंबी नली के छेद से गोली राड के द्वारा प्रवेश करायी जाती है। नली का अगला रास्ता पहली गोली से बंद हो जाता है। जब दुसरी गोली राड के धक्के से भीतर जाती है और हवा का दबाव पड़ते ही पहली गोली आवाज के साथ बाहर निकल भागती है।

मलकागिनी के फल

मटर के दाने के आकार का फल इस तुपकी में गोली का काम करता है। इस फल को पेंग कहा जाता है। ये जंगली फल होते है जो मालकागिनी नाम की लता में लगते है। मलकागिनी के फलों को तुपकी में गोली के रूप में उपयोग किया जाता है। ये फल यहां पेंग कहलाते है। पिचकारी चलाने की मुद्रा में निशाना साधकर राहगीरों पर तुपकी चलायी जाती है। बस्तर में भगवान जगन्नाथ के अनसर काल से रथयात्रा तक आम लोग तुपकी चला कर भगवान के प्रति अपनी आस्था एवं प्रसन्नता व्यक्त करते है।

तुपकी के बगैर बस्तर के गोंचा पर्व का वर्णन अधुरा है। तुपकी का प्रयोग से भगवान एवं राजा को सलामी दी जाती है। बस्तर के राजा पुरूषोत्तम देव के राजत्व काल में बस्तर मे गोंचा महापर्व प्रारंभ किया गया था।

गोंचा में तुपकी चलाने की प्रथा पहले सिर्फ कोरापुट में विद्यमान थी बाद में यह बस्तर में भी प्रारंभ हो गई। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा उत्सव में तुपकी चलाने की यह रस्म सिर्फ बस्तर में ही प्रचलित है।

आजकल तुपकी को विभिन्न फुलो एवं रंगीन कागजो से भी सजाया जाता है। आजकल छोटी से लेकर बड़े आकार की तुपकी भी बनायी जाती है।

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